लोक परंपराओं और कहावतों आदि पर यदि ध्यान देंगे तो वो स्थानीय परिवेश को समेकित किये होती हैं।जैसे बर्फीले देशों की कहावतों में आइस, पेंगुइन आदि आयेगा क्योंकि उनके परिवेश में वो सहज उपलब्ध है। भारत की किसी कहावत में पेंग्विन नहीं होगा क्योंकि भारत में पेंग्विन नहीं होता। भारत की कहावत होगी, धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का। बाहर देशों में न भारत वाला धोबी है न उसका घाट है।तो इस तरह से परिवेश का समेकन भाषा में परिलक्षित होता है।
यदि आपसे कोई कहे कि भाषा सम्प्रेषण का माध्यम मात्र है तो उसे अज्ञानी समझकर मान जाइयेगा। पर यदि वो अपना है तो उसे बताइयेगा कि भाषा संस्कृति की वाहक है।
हर भाषा अपना पूरा समाज,पूरा दर्शन,पूरी पारिस्थितिकी आदि अपने अंदर संजोये रखती है।
विश्व में सैकड़ों रामायण हैं। हर रामायण ने अपने परिवेश के अनुसार पात्रों व घटनाओं में कुछ न कुछ परिवर्तन किया है। जैसा कि हमने अभी देखा कि भाषा कैसे परिवेश की वाहक है,तो वैसे ही हर रामायण का स्थानीयकरण(localization) हुआ।
थाईलैंड की थाई रामायण में एक प्रसंग है। जब प्रभु सागर में सेतु निर्माण कर रहे थे तो सेतु की लम्बाई बढ़ नहीं रही थी। लोग चिंतित हुए कि ऐसा क्यों हो रहा है तो हनुमानजी पता लगाने निर्माणाधीन सेतु के अंतिम छोर तक गये।वहां जाकर इन्होंने देखा कि रावण के भेजे जलीय जीव सेतु से पत्थर चुरा कर ले जा रहें हैं।उन जलीय जीवों का नेतृत्व एक समुद्री ड्रेगन कर रहा था।फिर क्या हुआ,महाबली की क्रोध आया और ड्रेगन के मुंह से पत्थर छीन कर उसको पटक पटक कर इतना मारा कि उसके बैंकॉक का पट्टाया बन गया। खून खच्चर हो गया एकदम।
इस दृश्य को बैंकाक के एमेराल्ड बुद्ध मन्दिर में भित्तिचित्र के रूप में उकेरा गया है।बैंकाक जाने वाले मित्र इसकी पुष्टि कर सकते हैं।यानी प्रभु श्रीराम ने ड्रेगन को भले न मारा हो, हनुमानजी ने समुद्री ड्रेगन को चीर फाड़ के थाईलैंड के तट पर फेंक दिया था।
माया सभ्यता में महावीर हनुमान-
विश्व की जितनी भी प्राचीन सभ्यताएं थी उन सबमें आपस में घनिष्ठ संबंध थे।चाहे वह प्राचीन भारत की सिंधु सरस्वती सभ्यता हो,मेसोपोटामिया की सभ्यता हो,मिस्र की सभ्यता या लैटिन अमेरिका की 'माया सभ्यता'।सभी प्राचीन सभ्यताओं के निवासियों के मध्य विचारों और लोगों का प्रवाह होता रहता है। लगभग सभी प्राचीन सभ्यताएं प्रकृति पूजक थीं। वे कभी भी अपने विचारों को दूसरों पर नही थोपती थीं।
माया सभ्यता जिसे यूरोपियन लोगों ने बर्बर की संज्ञा प्रदान की और उन्हें नष्ट कर दिया।वह भी ऐसी ही महान सभ्यता थी।माया सभ्यता के लोग सूर्य भगवान के महान उपासक थे।माया सभ्यता में लोग 'मंकी गॉड' अर्थात हनुमान जी के समान देवता को मानते थे जो उनके लिए मंदिर और मूर्तियां भी स्थापित करते थे।आज भी अमेरिका के मूल निवासियों के अनेक नाम संस्कृत के मिलते हैं।बल्कि वहां आज भी "वानर" नामक एक जनजाति भी हैं।
हमारे देश में आज भी ऐसी अनेक जनजातियां हैं जो हनुमान जी को अपना पूर्वज और आदिपुरुष मानती हैं और उनके झड़े पर बंदर की मुद्रा अंकित होती है।हनुमान जी चारों वेदों के प्रकाण्ड विद्वान थे जिनके माता पिता और वनों के पवित्र और स्वछंद वातावरण में रहना पसंद किया।
माया सभ्यता के कुछ चित्रों में राम और सीता जी से मिलती जुलती आकृतियां हैं।इसी प्रकार इराक अर्थात प्राचीन मेसोपोटामिया से भी भगवान राम के चित्र मिलते हैं।बाकी रामजी और हनुमानजी की महिमा अपरम्पार है।
यक्ष प्रश्न: - राजन बताओ, मीराबाई चानन के हनुमान चालीसा पढ़ने की बात सुन कर प्रगतिशील बिलबिलाये क्यों?
आदर्श लिबरल:- महाबाहो,हनुमान चालीसा में "कांधे मुंज जनेऊ साजे" लिखा होता है।हनुमान जी ब्राह्मण-क्षत्रिय तो छोड़िये मनुष्य योनी के ही नहीं माने जाते।इससे केवल किन्हीं सवर्णों को जनेऊ पहनने का अधिकार था,वाला नैरेटिव टूट जाता है।वर्षों में बनाए नैरेटिव के ऐसे टूटने पर प्रगतिशीलों का बिलबिलाना तो बनता हैं।
बजरंगी भाई को गुस्सा क्यों आता है?
मेरे ख़याल से ये सवाल ही उल्टा है।सवाल ये है कि गुस्सा क्यों नहीं आना चाहिए?प्रचलित कथाओं के मुताबिक उन्होंने एक बार माता सीता से सिन्दूर लगाने का कारण पूछा।जब उन्हें पता चला कि भगवान राम से प्रेम के कारण वो सिन्दूर लगाती हैं तो थोड़ी ही देर बाद वो पूरे शरीर में सिन्दूर पोत कर प्रकट हुए। कारण पूछने पर बताया कि उन्हें भगवान राम से बहुत प्रेम है, ये दर्शाने के लिए उन्होंने पूरे शरीर में ही सिन्दूर पोत लिया है।
देवताओं में सबसे कड़े दण्डों देने के लिए जाने जाने वाले न्यायाधीश की जरूरत होती है तो यमराज को नहीं,सूर्य के ही एक और पुत्र शनि को न्यायाधीश बनाया जाता है।प्रचलित मान्यताओं के अनुसार शनि न्याय करने ना बैठें इसलिए हनुमान की उपासना शनिवार को की जाती है।शनि के लिए काले रंग का प्रयोग भी आराम से नजर आ जाएगा।ऐसे में जब एक प्रोपगंडा पोर्टल जो न्यूज़ और ओपिनियन कि आड़ में चलता है वो ये कहे कि हनुमान को भगवा और काले में दिखाना साजिश है तो उस सोच पर गुस्सा आना भी चाहिए।
बरसों पहले इक़बाल कह गए थे कि जम्हूरियत,यानि लोकतंत्र में बन्दों के सर गिने जाते हैं तौले नहीं जाते।अगर तौला भी जाए तो मुझे नहीं लगता कि ऐसे ओपिनियन राइटर्स के सर में भरे भूसे का वजन कम होगा।दादी-नानी कि गोद में सुने किस्सों कि जानकारी ना होने का कारण दिमाग में भरे भूसे के अलावा और क्या हो सकता है?इसी भारी वजन कि वजह से उनकी सोच भी उतनी गिर पाती है,वरना इतना गिरना भी आम तौर पर आसान तो नहीं ही होता होगा।
प्रोपगंडा पोर्टल्स के गिरी हुई सोच वालों के ऐसे जमावड़े में ही तरुण तेजपाल जैसे बलात्कारी पनप पाते हैं।हनुमान का नजर आना इनके नैरेटिव के लिए ठीक नहीं होता।वो कहा करते हैं कि जनेऊ सिर्फ ब्राह्मण पुरुष धारण करते थे।हनुमान ब्राह्मण तो क्या मानव भी नहीं दिखते,ऊपर से उनके साथ ही “कांधे मूंज जनेऊ साजे”भी याद आ जाता है।ये जानकारी किसी कथित रूप से कठिन भाषा में भी नहीं,लोक-भाषा में सर्वसाधारण के लिए उपलब्ध है।अभिजात्य को आम आदमी के जानकार हो जाने पर शिकायत तो होगी ही।
आप सवाल ही उल्टा कर रहें हैं।वैसे बरसों के सौतेले व्यवहार के बाद आपसे सही सवाल अपेक्षित भी नहीं था।पूछा तो ये जाना चाहिए कि आपके इतने दुर्व्यवहार,आपके इतने शोषण, आपकी इतनी झूठी नकारात्मक सोच को फैलाने की कोशिशों के बाद भी हनुमान जी को गुस्सा क्यों नहीं आता है? सनातनी सिद्धांतों के अधूरे श्लोक वाले “वसुधैव कुटुम्बकम्” जैसा शत्रुओं से एकतरफा प्रेम कबतक दर्शाते रहेंगे?
एंग्री हनुमान --
कुछ वर्ष पूर्व कर्नाटक के रहने वाले 'करण आचार्य' ने "क्रोधित हनुमान" की एक पेंटिंग बनाई थी,जिसकी प्रशंसा प्रधानमंत्री 'श्री नरेन्द्र मोदी जी' ने भी की थी और उनके द्वारा प्रशंसा किये जाने के बाद अचानक यह पेंटिंग देश भर में सुर्खियों में आ गया था।
OLA-UBER समेत निजी वाहन वाले हनुमान जी की इस तस्वीर को अपने-अपने कारों के ऊपर लगाने लग गये तो ओला-उबर का प्रयोग करने वाले लोग ऐसे कार ड्राइवरों को प्रोत्साहित करने हेतु उन्हें बिल से अधिक पैसे पेमेंट करने लगे। इन बातों से हिन्दू द्वेषी मीडिया व अन्य जमात वालों के सीने पर सांस लोटने लगे।"द वायर" आदि जमातों ने बजरंगबली को निशाने पर लेते हुए कई लेख लिखें।अगर आप पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं तो आपको यह भी याद होगा कि काफी पहले 'हंस' पत्रिका के संपादक 'राजेन्द्र यादव' ने यही हरकत की थी और हनुमान जी को "मानव-सभ्यता का पहला आतंकवादी" बताया था।
आपने कभी सोचा है कि बजरंगबली से इन जमातों के चिढ़ने की वजह क्या है?क्यों बजरंग बली की उस मनभावन पेंटिंग को ये 'ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेस' "मिलिटेंट हनुमान" कहने लगें?आख़िर हनुमान जी से इनके चिढ़ने की वजह क्या है?वजह है कि :-
"बजरंग बली" के उज्ज्वल चरित्र और कृतित्व से सम्पूर्ण भारत न जाने कितने सदियों से प्रेरणा लेता आया है। हनुमान प्रतीक हैं उस स्वाभिमान" के जिन्होंने 'बाली' जैसे महापराक्रमी परंतु अधम शासक के साथ रहने की बजाए 'बाली' के अनाचार से संतप्त 'सुग्रीव' के साथ रहना स्वीकार किया था ताकि दुनिया के सामने यह आदर्श स्थापित हो कि सत्य और न्याय के साथ खड़ा होना ही धर्म है।
हनुमान प्रतीक हैं उस "स्वामी-भक्ति" और "राज-भक्ति" के जिन्हें उस समय के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के प्रतिनिधि प्रभु श्रीराम का सानिध्य प्राप्त था परंतु उन्होंने अपने स्वामी सुग्रीव का साथ नहीं छोड़ा और उनके प्रति उनकी राजभक्ति असंदिग्ध रही।
हनुमान प्रतीक हैं उस सेतु के जो उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ती है। जिसने किष्किंधा और अयोध्या को जोड़ा। पेंटिंग बनाने वाले "करण आचार्य" दक्षिण से थे और पेंटिंग वायरल होने लगी दिल्ली में तो इनके पेट में मरोड़ उठने लगी कि अरे ये कैसे हो गया? हमने उत्तर भारत और दक्षिण भारत में कनफ्लिक्ट पैदा करने के लिए जो वर्षों- बर्ष मेहनत की है वो इतनी आसानी से कैसे जाया हो रही है?
हनुमान प्रतीक हैं उस "अनुशासन और प्रोटोकॉल" के जिसका अनुपालन उन्होंने अपने जीवन में हर क्षण किया जबकि 'हनुमान' विरोधियों को अनुशासनहीन समाज पसंद है।
हनुमान प्रतीक हैं उस पौरुष के जिसका स्वामी 'बाली' जब अधम होकर एक स्त्री पर कुदृष्टि डालने लगा तो उन्होंने उसे सहन नहीं किया और बाली का साथ छोड़ने में एक पल भी नहीं लगाया।
हनुमान प्रतीक हैं स्त्री रक्षण के प्रति उस कर्तव्य के जो किसी और की स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिए भी निडर-बेखौफ होकर उस समय के सबसे शक्तिशाली शासक को चुनौती देने उसके राज्य में घुस जाते हैं।
हनुमान प्रतीक हैं उस 'चातुर्य और निडरता' के जिनकी वाणी के ओज ने श्री राम को भी मंत्रमुग्ध कर दिया था।
अगर हम रामायण का कथानक देखें तो पता चलता है कि हनुमान,जामवंत,सुग्रीव,नल-नील,अंगद और तमाम दूसरे वानर वीर ये सब वो लोग हैं जो वनवासी-गिरिवासी और वंचित समाज के प्रतिनिधि हैं।ये उन लोगों के रूप में चिह्नित हैं जिनकी भाषा संस्कृत नहीं थी,जो किसी कथित उच्च वर्ग से नहीं थे, जो शहरी सभ्यता के नहीं थे परंतु इनके प्रतिनिधि के रूप में "हनुमान क्या उच्च वर्ण और क्या निम्न वर्ण, क्या नगरवासी और क्या वनवासी, सब हिन्दुओं के घरों में आराध्य रूप में पूजित हैं।
इनको "हनुमान जी" से पीड़ा इसलिये है क्योंकि इन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा कि कैसे वनवासी वर्ग का एक प्रतिनिधि हर हिन्दू घर में पूजित है। इन्हें ये पच नहीं रहा कि कैसे कोई ऐसा पात्र हो सकता है जिसके प्रति हिंदुओं के वंचित समाज से लेकर भारत का प्रधानमंत्री तक में एक समान भावना है।
"हनुमान" से इनकी वेदना इसलिए है क्योंकि उनके होते वर्ग- संघर्ष,जाति-संघर्ष,आर्य-द्रविड़ विवाद,उत्तर-दक्षिण संघर्ष पैदा करने के इनके तमाम षडयंत्र विफल हो जा रहे हैं।
हनुमान से इनको तकलीफ़ इसलिए भी है क्योंकि "मारुति" इन्द्रिय संयम के जीवंत प्रतीक हैं यानि बजरंगबली "यौन- उच्छृंखलता" के इनके नारों की राह के रोड़े भी हैं। हनुमान धर्म के नाम पर कहीं भी सॉफ्ट नहीं हैं, ये इनकी पीड़ा है।
एक अकेले हनुमान के कारण "ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेस" के तमाम मंसूबें नाकाम हैं तो इनको हनुमान से तकलीफ़ क्यों न हो?
आज हर हिन्दू घर में हनुमान कई रूपों में मौजूद हैं,कहीं वो तस्वीर रूप में,कहीं मूर्ति-रूप में,कहीं महावीरी-ध्वज रूप में, कहीं हनुमान-चालीसा,बजरंग-बाण या सुंदर-काण्ड रूप में उपस्थित हैं।
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