ये घटना 1998 की है। *मलेशिया के एक सेना के डिपो से* करीब 250 लोगों ने 12 suv में भरकर खतरनाक राइफल रॉकेट लांचर आदि हथियार लूट लिए थे।
सभी लुटेरे *सेना की वर्दी* में आये थे और लुटेरों के 5 लीडर सेना से रिटायर मेजर आदि अफसर ही थे।
ये सभी एक *इस्लामी जिहादी जमात* के लोग थे और सेना द्वारा अपनाई जाने वाली प्रणाली को जानते थे,
इसलिए लुटरों ने सभी हथियार दूसरे डिपो में शिफ़्ट करने के नाम पर ही लूटा था।
बड़ी मात्रा में खतरनाक हथियारों की लूट का समाचार जैसे ही प्रधान मंत्री *महातिर मोहमद* को मिला, तुरंत देश में आपातकाल लगाया और खोजबीन शुरु हुई।
मात्र 6 घंटे में ही 2 लुटेरे धरे गए और उन्होंने सबके नाम आदि उगल दिए।
रात्रि तक सबकी लिस्ट बना कर और *लुटेरों के परिवार वालों* को रात में ही पकड़ कर टैंक और तोपों के सामने बांध दिया और *राष्ट्रीय टीवी* वालों से बोल कर लाइव दिखाना शुरु किया और केवल 5 घंटे का समय दिया सामान सहित शरणागत होने के लिए,
नहीं तो सभी रिश्तेदारों को टैंक और तोपों से उड़ाने की बात बार-बार बोली जाने लगी।
कुछ ही देर में *सभी जिहादी* हथियारों सहित सेना के सामने घुटने टेकते हुए आ गए।
1-1 गोली तक वापिस आ गई।
उसके बाद उनके रिश्तेदारों को खोल दिया और जिहादिओं को वही सबके सामने *टैंकों से उड़ा* दिया।
कुल मिला कर *3000* लोगों को हुल्लू लंगट के जंगल में 2 दिन में गोली मार कर और टैंकों से कुचल कर मार दिया गया।
किसी ने चूं तक नहीं की।
अमेरिका और दूसरे यूरोप वाले चिल्लाते रहे
पर महातिर ने किसी की नहीं सुनी।
*उस दिन से आज का दिन है। कोई जिहादी मलेशिया में नहीं पनपा।*
*वन्दे मातरम*
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