कल (20th March 2022) फब ने ये पोस्ट डिलीट कर दी थी, पढ़ लीजिए शायद दोबारा हट जाए..
महाभारत में गुरु द्रोण शिष्यों से पूछते है, तुम्हे तोते में क्या दिखाई दे रहा है. किसी को तोते की पूंछ दिखाई देती है, किसी को गर्दन, किसी को पेड़ के पत्ते तो किसी को कुछ. किन्तु तोते की आँख किसी को दिखाई नही देती. अर्जुन को केवल तोते की आंख दिखाई देती है. वह सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाता है.
किसी भी वैचारिक लड़ाई में वामपंथियों को मात्र तोते की आंख दिखाई देती है. परन्तु राष्ट्रवादियो को आँख के अतिरिक्त सबकुछ.
इसलिए राष्ट्रवादी प्रत्येक लड़ाई में बंट जाते हैं. वे अतिरिक्त दिमाग लगाकर लिब्रल्स की नरेटिव माया में उलझ जाते हैं.
वामपंथी एक मनोवैज्ञानिक विचारधारा है. वह वायरस की तरह कार्य करती है. जैसे वायरस शरीर के रक्षक श्वेतकण को धोखा देने के लिए स्वयं श्वेतकण में परिवर्तित हो जाते है. तदुपरांत उन्ही के मध्य रहकर उन्हें ही खत्म कर देते हैं. श्वेतकण ठगे जा चुके होते है.
लिब्रल्स आपके दिमाग को पढ़ एक नया नरेटिव सेट कर आपको आपके ही खिलाफ खड़ा कर देते है. आपको लगता है आप अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, किन्तु वास्तविकता में आप उनके ही सैनिक बनकर अपने ही खिलाफ लड़ रहे होते हैं.
उदाहरणार्थ:-
केरल में गर्भिनी हथिनी की बर्बर पिशाचिक हत्या पर आप "शाकाहार-मांसाहार" नरेटिव में उलझकर बंट गए. आप एक जीती हुई लड़ाई अपने ही हाथों से स्वयं हार गए.
जबकि आपके पास सुनहरा अवसर था नरेटिव भुनाकर छद्म पशु प्रेमियों के दोगलेपन के पर्दाफाश करने का. उनकी नरेटिव पट्टी भोलीभाली जनता की आंखों से उतार फेंकने का.
किन्तु आपने अवसर "शाकाहार-मांसाहार नरेटिव" बहस में फंसकर गंवा दिया. आपने तोते की आंख के अतिरिक्त सबकुछ देखा.
इसे ही कहते हैं भेड़ नरेटिव जिसे वामपंथी अक्सर लड़ाई में कमजोर पड़ने पर प्रयोग करते हैं और आपको लक्ष्य से भटकाकर बांट देते हैं.
ऐसे अनेको उदाहरण है.. जिसमे से एक वर्तमान कश्मीर फाइल्स मुद्दा है. यहाँ भी आपको उसी नरेटिव माया में फंसाया जा रहा है, और आप फंस रहे है. मसलन..
1.कश्मीरी हिंदुओ के जीनोसाइड के वक्त सरकार को समर्थन भाजपा दे रही थी. जिसके सांसद अटल, आडवाणी थे. 2. राज्यपाल जगमोहन थे.
इसे कहते है छद्म नरेटिव जहां आपको अर्धसत्य दिखाया जाए. जब मार्क्सवाद(वामपंथ) के पास कोई अस्त्र शेष नही रह जाता तब वे अंतिम अस्त्र भेड़ नरेटिव का प्रयोग करते है.
जिसमें वे छद्दम नरेटिव विमर्श में उलझाकर मुख्य विषय गौण कर देते है. द कश्मीर फाइल्स में आरम्भिक लड़ाई हार चुके लाल खेमे ने अपनी तरकश का अंतिम अस्त्र भेड़ नरेटिव चल दिया है.
सच्चाई यह है कि जगमोहन जब दोबारा राज्यपाल बने मात्र 127 दिन पद पर रहे और जितने समय रहे उन्होंने जान पर खेलकर कश्मीरी हिंदुओ के पलायन को रोकने के लिए भरसक प्रयास किये. जब वे दोबारा राज्यपाल बने तो दुर्भाग्य से उसी दिन 19 जनवरी 1990 जीनोसाइड की घटना घट गई. जगमोहन ने हालात को संभालते हुए सख्ती दिखाई तो चरमपंथियों में कोलाहल मच गया. उसवक्त तत्कालीन पाक वजीरे आलम बेनजीर भुट्टो ने कहा था जबतक जगमोहन है कश्मीर आजाद नही होगा. बेनजीर ने जगमोहन को कश्मीर से भगाने का आह्वान करते हुए यहाँ तक कह दिया कि इसे जगमोहन से भागमोहन बना दो.
जगमोहन को कश्मीर में राज्यपाल बनाने का दवाब सरकार में शामिल भाजपा के कारण ही सम्भव हुआ. हालांकि कश्मीरी हिंदुओ का दुर्भाग्य था कि जगमोहन जीनोसाइड नही रोक पाए लेकिन उन्होंने अनेक जीवन बचाये भी.
लेकिन आपको जीनोसाइड का मुख्य दोषी जगमोहन और भाजपा बताया जा रहा है क्यों, क्योंकि g हादियो पर पर्दा डाला जा सके. इसे कहते है भेड़ नरेटिव, यहाँ आपको तोते की आंख के अतिरिक्त लिब्रल्स द्वारा सबकुछ दिखाया जा रहा है और आप अतिरिक्त दिमाग लगाकर देख भी रहे हैं. क्योंकि आपके विमर्श की शक्ति गौण है. ध्यान रहे द कश्मीर फाइल्स मात्र एक फ़िल्म न होकर एक विचार है, उसे उसी दृष्टिकोण से देखिए. उस विचार को मजबूत पक्ष बनाकर आपके पास अनेक शक्तिशाली वामपंथी नरेटिव ध्वस्त करने का सुनहरा अवसर है. इस बार उसे मत गंवाइए.
ये लड़ाई वैचारिक लड़ाई है. इकोसिस्टम बनाम लोकशाही की लड़ाई है. G हाद बनाम मानवता की है. कराचीबुड बनाम देशभक्त जनता की लड़ाई है. ये एक बड़ी लड़ाई है. इसके महत्व को समझने का प्रयास कीजिए.
अतः किन्तु, परन्तु, कदाचित जैसे शब्दों का त्याग कर तोते की आंख पर निशाना साधिए.
इस बार हमें जीतना हो होगा... क्योंकि यहाँ हारने का मतलब खत्म होना है.
...... और कश्मीर महादेव की भूमि है, ऋषि कश्यप की भूमि है, माँ शारदा की भूमि है
आप को ना जाना हो तो ना जाओ, हम तो पूरा कश्मीर लेके ही शांत बैठेंगे
साभार: डॉ गौरव प्रधान
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