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देश में बस रहे बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान की समस्या

देश में बस रहे बंगला देशीऔर रोहिंग्या मुसलमान की समस्या को लेकर गंभीरता जो दिखनी चाहिए।वह नहीं दिख रही है। केवल असम में इस समस्या को लेकर कुछ प्रयास हुए है।पर उसका भी संतोषजनक परिणाम आना बाकि है।असम में घुसपैठ के विरुद्ध चले आंदोलन के कारण 1981 के बाद घुसपैठिये असम की बजाय प.बंगाल और उत्तर प्रदेश में जा कर बसने लगे।यही बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की गढ़ है दिल्ली की जहांगीरपुरी,जहां हिन्दुओं के हनुमान जन्मोत्सव पर निकली शोभायात्रा पर पत्थर,तलवार और गोलियां चलाई गई दंगाइयों के द्वारा। 1981 से 1991 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम जनसंख्या वृद्धिदर 32.90 प्रतिशत थी पर प. बंगाल के जलपाईगुड़ी जिला में यह 45.12 प्रतिशत,दार्जिलिंग जिला में 58.55 प्रतिशत, कोलकाता जिला में 53.75 प्रतिशत तथा मेदनीपुर जिला में 53.17प्रतिशत थी।पश्चिम बंगाल की ही तरह उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिला में यह 46.77 प्रतिशत, मुजफ्फरनगर जिला में 50.14 प्रतिशत, गाजियाबाद जिला में 46.68, अलीगढ़ 45.61, बरेली में 50.13 प्रतिशत तथा हरदोई जिला में 40.14 प्रतिशत थी।सबसे आश्चर्यजनक उप्र का सीतापुर जिला,जहां मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत 129.66 प्रतिशत था। 1991 से 2011 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या वृद्धि दर 44.39 प्रतिशत,हिंदू वृद्धि दर 40.51 प्रतिशत तो मुस्लिम जनसंख्या वृद्धिदर 69.53 प्रतिशत थी,पर अरुणाचल में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 126.84 प्रतिशत, मेघालय में 112.06, मिजोरम में 226.84,सिक्किम में 156.35, दिल्ली में 142.64,चण्डीगढ़ में 194.36 तथा हरियाणा में 133.22 प्रतिशत थी।मुस्लिम जनसंख्या में हुई यह अप्रत्याशित वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि बांग्लादेश और म्यांमार से मुस्लिम घुसपैठिये भारतीय राज्यों में बस रहे हैं। 1961 में देश की जनसंख्या में मुस्लिम जनसंख्या 10.7 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 14.22 प्रतिशत हो गई है। यानी 50 वर्ष में मुस्लिम जनसंख्या में 3.52 प्रतिशत की वृद्धि तब हुई है जबकि इसमें घुसपैठियों को भी शामिल किया गया है। इसी दौर में प. बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 20 प्रतिशत से बढ़कर 27.01 प्रतिशत तो बिहार के पूर्णिया,किशनगंज, अररिया और कटिहार जिला में 37.61 प्रतिशत से बढ़ कर 45.93 प्रतिशत हो गई है।जैसे ही यह मुद्दा उठता है।वामदल, तृणमूल कांग्रेस से लेकर शहरी नक्सली आदि यथासंभव शोर मचाने लगते हैं। उन्हें लगता है कि अवैध शरणार्थी उनके वोट बैंक हैं। यह सत्य है कि अनेक नेताओं ने अवैध शरणार्थियों के राशन कार्ड ,आधार कार्ड एवं वोटर कार्ड बनवाकर उन्हें देश में बसाने के लिए पुरजोर प्रयास किया हैं। इन लोगों ने देश को सराय बना डाला हैं क्यूंकि ये लोग केवल तात्कालिक लाभ अपनी कुर्सी के लिए केवल तात्कालिक लाभ देखते है।भविष्य में यही अवैध शरणार्थी एकमुश्त वोट-बैंक बनकर इन्हीं नेताओं की नाक में दम कर देंगे।इससे भी विकट समस्या यह है कि बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या भारत के गैर मुसलमानों के भविष्य को लेकर भी एक बड़ी चुनौती उपस्थित करेगी।क्योंकि इस्लामिक साम्राज्यवाद की नीति के तहत जनसंख्या समीकरण के साथ मुसलमानों का गैर मुसलमानों के साथ व्यवहार में व्यापक परिवर्तन हो जाता हैं।2005 में समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की विश्वभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी,जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी,टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’।इसके साथ ही ‘द हज’के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है।जो तथ्य निकल करआए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं। उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है,तब वे एकदम शांतिप्रिय,कानूनपसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का अवसर नहीं देते।जैसे अमरीका में वे (0.6 प्रतिशत) हैं, आस्ट्रेलिया में1.5, कनाडा में 1.9, चीन में 1.8, इटली में 1.5 और नॉर्वे में मुसलमानों की संख्या 1.8 प्रतिशत है। इसलिए यहां मुसलमानों से किसी को कोई परेशानी नहीं है। जब मुसलमानों की जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपनाे मज़हब का प्रचार आरम्भ कर देते हैं। जैसा कि डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में जहां क्रमश: 2, 3.7, 2.7, 4 और 4.6 प्रतिशत मुसलमान हैं। जब मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश या क्षेत्र में 5प्रतिशत से ऊपर हो जाती है,तब वे अपने अनुपात के अनुसार से अन्य धर्मावलंबियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने का प्रयास करने लगते हैं।उदाहरण के लिए वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर ‘हलाल’ का मांस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि ‘हलाल’ का मांस न खाने से उनकी मज़हबी मान्यताएं प्रभावित होती हैं।इस कदम से कई पश्चिमी देशों में खाद्य वस्तुओं के बाजार में मुसलमानों की तगड़ी पैठ बन गई है। उन्होंने कई देशों के सुपरमार्कीट के मालिकों पर दबाव डालकर उनके यहां ‘हलाल’ का मांस रखने को बाध्य किया। दुकानदार भी धंधे को देखते हुए उनका कहा मान लेते हैं। इस तरह अधिक जनसंख्या होने का फैक्टर यहां से मजबूत होना शुरू हो जाता है, जिन देशों में ऐसा हो चुका है, वे फ्रांस, फिलीपींस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो हैं। इन देशों में मुसलमानों की संख्या क्रमश: 5 से 8 फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के अनुसार चलने दिया जाए। दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व मुस्लिम बन शरीयत कानून के अनुसार से चले। जब मुस्लिम जनसंख्या किसी देश में 10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है,तब वे उस देश,प्रदेश,राज्य,क्षेत्र विशेष में कानून -व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं। शिकायतें करना शुरू कर देते हैं।उनकी ‘आर्थिक परिस्थिति’ का रोना लेकर बैठ जाते हैं।छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे,तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं।चाहे वह फ्रांस के दंगे हों डेनमार्क का कार्टून विवाद हो या फिर एम्सटर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवाद को समझ बूझ,बातचीत से समाप्त करने के स्थान पर खामख्वाह और गहरा किया जाता है।ऐसा गुयाना (मुसलमान 10 प्रतिशत), इसराईल (16 प्रतिशत), केन्या (11 प्रतिशत), रूस (15 प्रतिशत) में हो चुका है। जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं,असहिष्णुता और मज़हबी हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है। मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं।जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है।शोधकत्र्ता और लेखक डा.पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ आरम्भ किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोडऩा,जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है।जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है। किसी देश में जब मुसलमान बाकी जनसंख्या का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बंगलादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत),गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत),ईराक (97 प्रतिशत),जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है। यह आकड़ें सब कुछ स्पष्ट कर रहे हैं। विकास,गरीबी हटाओ,शिक्षा,नौकरी,स्वास्थ्य,सेना, व्यापार, GST जैसे मुद्दों पर राजनीतिक दल से लेकर मीडिया अनेक प्रकार के चिंतन और मंथन करते दीखते हैं। मगर बंगलादेशी और रोहिंग्या मुसलमान की इस अति महत्वपूर्ण समस्या पर यथोचित कदम उठाने वाली दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए संकट बनकर उभर रहा है। अगर वक्त रहते इस समस्या का समूल निदान नहीं किया गया तो आपका देश भी शीघ्र अतिशीघ्र इस्लामिक राष्ट्र में गिनती किया जाएगा।

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