अमेरिका,ब्रिटेन ओर जर्मनी की तरह क्या भारत दुनिया के वैश्विक कूटनीतिक और खुफिया एजेंसियों के नियंत्रक देश बनने की ओर बढ़ रहा है ? आखिरकार प्रधानमंत्री मोदीजी के दिमाग में चल क्या रहा है?इससे भारत के दुश्मन देशों में इतनी छटपटाहट क्यों?
भारतीय विदेश मंत्रालय,विदेश मंत्री जयशंकर जी के नेतृत्व में दिल्ली में अपना वार्षिक रायसीना डायलॉग शुरू करने से दो दिन पहले,भारत के NSA अजीत डोभाल साहब रविवार को नई दिल्ली में आयोजित होने वाले भारत में पहली बार ऐसे विदेशी खुफिया एजेंसी प्रमुखों के सम्मेलन में चर्चा का नेतृत्व करने जा रहे हैं,जिसमें 40 देशों के खुफिया एजेंसियों के प्रमुख भाग ले रहे हैं.
अपने अपने देशों के शीर्ष अधिकारियों सहित भारत के साथ उच्च स्तरीय शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए 40 देशों के खुफिया एजेंसियों के प्रमुख भारत के NSA अजित डोभाल साहब इसका नेतृत्व करने जा रहे हैं। जर्मनी में हरसाल हो रहे वार्षिक म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन और सिंगापुर के शांगरीला संवाद की तर्ज पर ही भारत द्वारा बनाए गए इस सम्मेलन में विश्व भर के 40 से अधिक देशों जिसमें से ज्यादातर पश्चिमी देश ओर उनके सहयोगियों के शीर्ष खुफिया और सुरक्षा संगठनों के प्रमुखों और उप प्रमुखों को भारत एक साथ एक टेबल पर बैठाई।जिसमें प्रमुख देशों में से जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया,इज़राइल,सिंगापुर,जापान,न्यूजीलैंड के खुफिया प्रमुख और प्रतिनिधि भी सम्मेलन में भाग लेने वालों में शामिल हैं।भारत में इस महा सम्मेलन का आयोजन देश के बाहरी खुफिया एजेंसी, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग RA&W और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय NSCS द्वारा किया जा रहा है जो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को रिपोर्ट करता है।
उधर देश में भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा 2016 से हर साल आयोजित रायसीना संवाद, मंगलवार को शुरू हुआ है।भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी इस सम्मेलन का उद्घाटन किए जबकि यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ये सम्मेलन का मुख्य अतिथि हैं।विदेश मंत्रालय ने कहा कि अर्जेंटीना, आर्मेनिया, ऑस्ट्रेलिया, गुयाना, नाइजीरिया, नॉर्वे, लिथुआनिया, लक्जमबर्ग, मेडागास्कर, नीदरलैंड, फिलीपींस, पोलैंड, पुर्तगाल और स्लोवेनिया के विदेश मंत्री ओर 90 देशों और बहुपक्षीय संगठनों के लगभग 200 से ज्यादा वक्ता इसमें भाग लिए।
भारत के NSA जो विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ बैठक किए उसके विषयवस्तु को गुप्त रखा गया है। और मजेदार बात यह है कि इस खुफिया एजेंसियों के सम्मेलन में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI, चीनी के खुफिया एजेंसी MSS को दूर रखा गया है, यानी आमंत्रित नहीं किया गया है। भारत पश्चिमी देशों के लिए एक समस्या बनकर उभर रहा है ! अबतक भारत की पहचान एक बड़े बाज़ार भर की थी, लेकिन रुस-यूक्रेन युद्ध और भारत का रुस को खुला समर्थन ने पूरा मामला ही पलट कर रख दिया है।
पिछले कुछ दिनों से अमेरिकन और तमाम यूरोपीयन देशों के प्रतिनिधि ताबड़तोड़ दिल्ली पहुंच रहें हैं। भारत के रक्षा और विदेश मंत्री का स्वागत करते खुद अमेरिकन राष्ट्रपति को दुनिया ने देखा। इतनी आवभगत क्यों? जबकि एस जयशंकर सरेआम अमेरिका में ही जाकर अमेरिका के मानवाधिकार उल्लंघन पर खरी खोटी सुना रहे। जर्मन प्रतिनिधि को पिछले दिनों ही दिल्ली में बिठाकर उसके मुँह पर रुस से तेल ख़रीदने के मामले में आइना दिखाया। अचानक हो रहे इस अभूतपूर्व घटनाक्रम का एकमात्र कारण है भारत का रुस को खुला समर्थन।रुस के पीछे दुनिया का मैन्युफ़ैक्चरिंग ग्राउंड चीन खड़ा है तथा बग़ल में खड़ा है विश्व का सबसे बड़ा हथियारों का आयातक और 135 करोड़ नागरिकों का अकेला बाज़ार भारत।भारत का राजनैतिक नेतृत्व किल ठोककर बिना प्रतिबंधों की परवाह किए रुस से ताबड़तोड़ तेल गैस की आयात बढ़ा रहा है। जबकि पड़ोस में एक प्रधानमंत्री की कुर्सी सिर्फ़ इस बात पर चली गईं क वो पुतिन से युद्ध बीच मिलने चला गया।
अब अमेरिका इस बात की लॉबी में लगा था कि भारत को G -7 बैठक में न बुलाया जाए तथा तमाम तरह के सैंक्शन भारत पर थोपा जाए।लेकिन अब पूरा गेम पलटता हुआ दिख रहा है।
BRICS की बैठक चीन में होनी है और चीन चाह रहा कि किसी तरह मोदी आ जाएं।इसका महत्व इस बात से समझिए कि BRICS देशों का दुनिया की कुल आबादी का 40% योगदान है,जबकि संसार के कुल GDP का 43% अकेले इन एशियाई देशों के पास है।मतलब आधी दुनिया को ख़रीदने लायक़ औक़ात।
अब रुस की मंशा है कि इस बार अमेरिका का सारा खेल ही ख़त्म हो जाए।चीन की भारत से मित्रता कराने पर तुला है। पूरी सम्भावना है कि BRICS देशों की अलग मुद्रा बनेगी जो दुनिया के कुल 50% ट्रांजैक्शंस आपस में ही कर लेंगें। लोन बांटने के लिए WTO/IMF की जगह अपनी संस्था विकसित करेंगे और रेटिंग एजेन्सी भी अपनी होगी।भारत की साख अभी इतनी अच्छी है कि BRICS के अंदर इसके उपस्थिति मात्र से बहुत देशों में इस मुद्रा को अपनाने और सम्मिलित होने की होड़ सी मच जाएगी।
इसलिए रुस किसी तरह मोदी को मनाने के लिए चीन के साथ लगा हुआ है। भारत इसमें मुख्य भूमिका में है अतः सारे पश्चिमी देश एकदम सहमा हुआ है कि कहीं भारत चीन के क़रीब न आ जाए।
रुस पहले से ही वैश्विक राजनीति का एक माहिर खिलाड़ी है। चीन की महाशक्ति बनने के सपने किसी से छुपे नहीं हैं। चीन को रोकने के लिए अमेरिका भारत को अपना प्यादा बनाना चाहता है ये भी सबको पता है।दक्षिण चीन सागर में भारत के ख़ौफ़ के चलते आजतक चीन की हिम्मत नहीं होती क़ब्ज़े की। रुस भारत की रक्षा ज़रूरतों और टेक्नॉलजी हस्तांतरण में हर वक्त मदद करता है। ऐसे में रुस-यूक्रेन वार में भारत की शानदार कूटनीति की हमें प्रशंसा करनी चाहिए।
भारत की जनता भी बधाई की पात्र है जिसने सत्ता में ऐसे नेतृत्व को खूंटा ठोंक कर बिठाया है जो दुनिया में भारत का जलवा बिखेर रहा,वह भी उस स्थिति में जब कोरोना और यूक्रेन वार से कई देश दिवालिया हो रहे हैं।
अगर BRICS के मामले में रुस अपनी मंशा में सफल होता है और अपनी मुद्रा लाता है तो यक़ीन मानिए दुनिया फिर एशिया से चलेगी।डॉलर के बल पर कितने ही देशों की राजनीतिक आर्थिक आज़ादी नष्ट करनेवाला अमेरिका डूबेगा। उसका आर्थिक पतन हम अपनी आंखों से देखेंगे।
Electric Vehicle तमाम तेल एक्स्पॉर्ट OPEC देशों को बर्बाद करेगा।दुनिया बहुत बदलने वाली है,सम्भवतः रुस-यूक्रेन युद्ध भारत के लिए सुअवसर है।भारत अभी अमेरिका की ब्लैकमेलिंग कर सकने की स्थिति में है।
बाईडेन दहशत में है और सारा विश्व भारत की तरफ़ देख रहा। यह क्षण गौरवशाली है और एक भारतीय होने के नाते यह पल गर्व से अभिभूत करता है।सम्भवतः अमेरिका का अंत नज़दीक है। केवल इतना ही नहीं बीते कुछ साल में भारत के पासपोर्ट की साख भी दुनिया में बढ़ी है। दुनिया का भारत को देखने का नजरिया बदला है। अब विश्व के सामने देश का दमखम दिखाने से भारत चूकता नहीं।ऐसे में यह कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि भारत पुनः विश्व गुरु बनने की राह पर है। ===0---
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